Monday, June 28, 2010

जनगणना के अंतर्गत जातिगणना सामाजिक समरसता एवम एकात्मता के प्रयासों को दुर्बल करेगी --- भैय्याजी जोशी

राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के नागपुर स्थित महाल मुख्यालय मे
श्री भैय्याजी जोशी


संघ के सरकार्यवाह श्री. भैय्याजी जोशी ने पत्रकारों को दिए गए एक विशेष वक्तव्य में कहा की जनगणना के अंतर्गत जातिगणना सामाजिक समरसता एवम एकात्मता के प्रयासों को दुर्बल करेगी| सम्पुर्ण वक्तव्य यहाँ प्रस्तुत है

statement


सरकार्यवाह श्री. भैया जी जोशी की नागपुर में 23/5/2010, रविवार को दोपहर में हुई प्रेसवार्ता का शब्दांकन

अभी इस समय जनगणना की तैयारी चल रही है। इसमें दो-तीन विषय हैं, जिन्हें मैं आपके सामने रखना उचित समझता हूँ। एक, इसी समय नेशनल पापुलेशन रजिस्टर बनाने की बात शुरू हुई है, यह तो बनेगा पर इसमें जो विदेशी नागरिक भारत के अन्दर बसते हैं, अवैध रूप से बसे हुए हैं, उनकी जानकारी भी इसमें आने की संभावना है। संघ का निवेदन है कि, माँग है सरकार के सामने कि इस नेशनल पापुलेशन रजिस्टर को और जो बहुउद्देश्यीय पहचान पत्र दिया जायेगा उसके लिए इसे आधार न मानें। 2003 में उस समय की सरकार ने एक नेशनल रजिस्टर आफ सिटीजन्स तैयार करने का निर्णय किया था, हमारी माँग है कि उसी को लागू किया जाये। और यह जो पहचान पत्र दिया जायेगा, जो नागरिकता का कानून है उसको आधार बनाकर ही दिया जाये। अन्यथा सम्भावना है कि बहुत से विदेशी नागरिकों को भी पहचान पत्र मिलेगा। इससे, हमें लगता है कि देश की अखण्डता और सुरक्षा पर प्रश्नचिन्ह लग सकता है, खतरा बन सकता है।

उसी के साथ-साथ एक और विषय जो मैं आपके सामने रखना उचित समझता हूँ कि जनगणना में जातिगणना की माँग भी चल रही है। अपने जो संविधान निर्माता डा. बाबा साहब अम्बेडकर जी और उनके समान ही विचार करने वाले लोगों ने जातिविहीन समाज की कल्पना की है। इस प्रकार जाति आधारित गणना उस भावना को छेद देने वाली है, ऐसा लगता है। संविधान ने आरक्षण के संदर्भ में- शेड्यूल्ड कास्ट्स, शेड्यूल्डस ट्राइब्स, यह जो सूत्र दिये हैं, इस प्रकार की जाति आधारित गणना करने से उन सूत्रों को भी ध्यान में रखने की आवश्यकता रहेगी तो ऐसा निर्णय होगा। हम अनुभव करते हैं कि कई प्रकार की संस्थाओं के द्वारा, व्यक्तियों के द्वारा, संगठनों के द्वारा सामाजिक समरसता और एकता बनाये रखने के लिए कई प्रकार के प्रयास चल रहे हैं। हमारा मानना है कि इस प्रकार की गणना करने से उन सारे प्रयत्नों को दुर्बलता होगी। इसलिए इस संदर्भ में भी बहुत कुछ विचार करने की आवश्यकता है। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ का काम पहले से ही जाति भावना से ऊपर उठकर समाज विचार करे, संगठित हो, ऐसा रहा है। समग्र समाज का संगठन करने का काम कई वर्षों से रहा है। उसमें हम मानते हैं कि इस प्रकार की भावनाएँ यदि विकसित होती हैं। तो कुल मिलाकर यह सामाजिक ताना-बना खतरे में आ सकता है। ठीक है कि हिन्दू समाज का अन्य पिछड़ा वर्गजिसको माना जाता है, जिसे ओ. बी. सी. कहा जाता है, उनके आरक्षण के संदर्भ में जो प्रावधान करने की बात है, उस पर अलग प्रकार से विचार हो, उसके मानदण्ड अलग से निर्धारित किए जायें। आज सारे देश में उसमें कोई समानता है, ऐसा दिखाई नहीं देता है। तो इस संदर्भ में भी बहुत गम्भीरता से विचार करने की आवश्यकता ध्यान में आती है। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के नाते, हमारी मांग है कि इसकी राष्ट्रीय स्तर पर बहस हो। भिन्न-भिन्न प्रकार के यह प्रश्न सामाजिक सद्भाव के प्रश्न हैं, सामाजिक जीवन से जुड़े हुए प्रश्न हैं और इसलिए भिन्न-भिन्न प्रकार के सामाजिक समूहों से भी इसकी एक व्यापक बहस चलनी चाहिए, विचार-विमर्श होना चाहिए। और कोई भी निर्णय करने के पूर्व ऐसी सारी प्रक्रिया हो और उसके बाद निर्णय होना उचित रहेगा, ऐसा संघ मानता है। विशेष रूप से दो बातें, नेशनल पापुलेशन रजिस्टर बनाते समय विदेशी नागरिकों के संदर्भ में, उनके पहचान का प्रावधान नहीं है, तो निश्चित किया जाए। और मल्टी परपज आइडेन्टिटी कार्ड को देते समय भी इस पर विचार होना चाहिए। कानून बना हुआ है 2003 में, उसको ध्यान में लाकर इसको लागू करें और उसके आधार पर ही पहचान पत्र देना चाहिए। और जाति के बारे में अपनी बातें मैंने आपके सामने रखी।


प्रश्न 1. कुछ संघ परिवार के लोग हैं, वह बढ़चढ़कर ऐसी डिमांड कर रहे हैं।...............गोपीनाथ मुंडे जो हैं .............?

उत्तर - राजनैतिक दल क्या सोचें और क्या कहें.........मैंने संघ की राय आपके सामने रखी।


प्रश्न 2. अपने जो लोग हैं, पोलिटिकल आर्डर में, उन तक विचार नहीं पहुँचा है ?

उत्तर - उनकी अपनी एक सोच है, उनका एक राजनैतिक क्षेत्र है, उसमें वे जैसा चाहें, उचित समझें, करें।इन प्रश्नों को उनके सामने रखा जायेगा। हमने आज तक, संघ की जो रीति है, संघ की जो सोच है, उसको आपके सामने रखा है। हम चाहते हैं कि देश इसके कारण, समरसता और एकात्मता के जो प्रयास हैं, जातिविहीन समाज की जो कल्पना है, उसको इसके कारण ठेस पहुँचने वाली है।


प्रश्न 3. इस सामाजिक सच्चाई को आप स्वीकार करेंगे कि आज भी समाज में विवाह आदि संबंध लेके तमाम चीजें जाति के आधार पर ही होती हैं। आजादी के बाद भी जातियों को लेकर डेमोग्राफी हुई है, उसमें OBC को लेकर आँकड़े अलग-अलग हैं। सुप्रीम कोर्ट भी इस संबंध में यह कह चुका है कि हमारे पास इसका कोई एक फिगर नहीं है, तो अगर कोई एक्जैक्ट साइंटिफिक फिगर निकाली जाती तो उसमें क्या विरोध हो सकता है?

उत्तर - हमारा विरोध नहीं। मैंने कहा है इसमें कि, इसके बारे में भिन्न भिन्न प्रकार की बहस हो और सामाजिक समूहों की राय इसमें ली जाए और फिर इसका निर्णय करें। हमने कहा है कि मापदण्ड निर्धारित किए जायें, OBC के आरक्षण के विरोध का तो सवाल ही नहीं आता।

प्रश्न 4. कास्ट -बेस्ड सेंसस नहीं होना चाहिए ये आपका कहना है ?

उत्तर - हाँ, कास्ट-बेस्ड नहीं होना चाहिए । ओ. बी. सी. का मतलब ही अदर बैकवर्ड क्लासहै तो क्लास के आधार पर ही इसे सेटल्ड भी किया जाए, इस पर विचार किया जाए।

प्रश्न 5. सेंसस की तैयारी चली, यह चालू भी हो गई, एक राउंड हो भी रहा है, आप इतना लेट अभी ........ संघ इतना ........?

उत्तर - इसकी बहस अभी शुरू हुई है। 1930 से लेकर आज तक कभी कास्ट को लेकर सेंसस नहीं हुआ है, पहली बार यह मांग उठी है। जब पहली बार यह मांग उठी......

प्रश्न 6 नहीं, SC, ST, तो पूछा जाता है ...................

उत्तर - तो उतना ही,.........., कैटेगरी ही पूछी है, कास्ट नहीं पूछी। शेड्यूल्ड कास्ट पूछा है, शेड्यूल्ड ट्राइब पूछा है, उसका कोई संबंध नहीं है। आज सभी की जातियाँ जानने की कोशिश हो रही है।


प्रश्न 7 संसद में यह बात निकली है, पार्टीयों में कन्सेन्सस हो गया है। उसके काफी दिन बाद, एक महीने बाद यह....?

उत्तर - उसमें दो प्रकार के ओपिनियन आ रहे हैं। कोई विरोध करने वाले भी उसी प्रकार खड़े हैं, सभी दलों में से हैं। कास्ट के अनुसार जनगणना करना, उसका विरोध करने वाले भी हैं।

प्रश्न 8. मैं सीधे-सीधे एक प्रश्न यह पूछना चाहता हूँ कि क्या भा. ज. पा. से चर्चा हुई है, नहीं हुई है तो क्या चर्चा कर रहे हैं?

उत्तर - भा. ज. पा. से इस बारे में चर्चा करने की हमको बहुत ज्यादा आवश्यकता है। संघ ने इस बारे में जो सोचा है, प्रारंभ से जो चिंतन हमारा है, उसको मैंने आपके सामने रखा।

प्रश्न 8. आपका अर्थ है कि केवल कैटेगरी पूछी जाये? एस. सी., एस. टी ............?

उत्तर - एस. सी., एस. टी. पूछने का तो विरोध है ही नहीं, वह संविधान में दिया हुआ अधिकार है। उसके बारे में स्थिति स्पष्ट है। एस. सी., एस. टी. , ओ. बी. सी. पूछने का विरोध नहीं ? .......हाँ, ओ. बी. सी. का कोई स्टैण्डर्ड कहाँ बना हुआ है। अलग-अलग राज्यों में अलग-अलग जातियाँ हैं। किस आधार पर ओ. बी. सी. का काउंटिंग किया जाये? उसका कोई निर्धारण नहीं किया है। इसलिये हमने माँग की है कि जरा इसके मानदण्ड निर्धारित करें और बाद में करें।

प्रश्न 10. मानदण्डों के बारे में आपका कोई सुझाव है क्या?

उत्तर - नहीं हमारा कोई सुझाव नहीं है। जब चर्चा चलेगी, तब इसके बारे में सोचकर बतायेंगे।

प्रश्न 11. यानि आप कहते हैं कि पहले बहस हो, उसमें जो निकले, उस पर ही?

उत्तर - उसी से। राष्ट्रीय स्तर पर इसकी बहस होनी चाहिए। इस प्रकार के बड़े कार्य की बात आप करने जा रहे हो और इसकी चर्चा कहीं पर नहीं हुई है। हमारी इच्छा है, हमारी अपेक्षा है कि शासन राष्ट्रीय स्तर पर इसकी बहस चलाये, भिन्न-भिन्न प्रकार के सामाजिक समूहों से चर्चा करे। विचार-विमर्श करके इस बारे में निर्णय हो। उचित वही होगा, सबकी राय ली जाये।

प्रश्न 12. एक दूसरा मुद्दा है, अवैध रूप से बसे हुए विदेशी नागरिकों को पहचान पत्र देने का प्रावधान नहीं है, इसमें ओरिजिनल एक्ट है और एक आई. एम. डी. टी. एक्ट भी है?

उत्तर - नहीं, यह जो नेशनल पापुलेशन रजिस्टर बन रहा है, उसमें नहीं है। उसके आधार पर वह आइडेन्टिटी कार्ड देते हैं तो समस्या है। आइडेन्टिटी कार्ड देते समय इस पर विचार किया जाय।

प्रश्न 13. अवैध रूप से आकर बसे हुए जो लोग हैं, 3.5 करोड़ - 4 करोड़ उनकी संख्या बतायी जाती है?

उत्तर - सभी आज इसको स्वीकार करते हैं कि बहुत से अवैध विदेशी नागरिक हैं भारत में। उनकी भी इसमें अगर ........ नेशनल सिटिजन्स में आ जाते हैं तो खतरा है। चलिए, धन्यवाद आपका।


Tuesday, June 15, 2010

1 रुपये व 5 रुपये के सिक्के पर संत अल्फ़ोन्सा कि तसवीर क्यो ?

यहा पर मे आप को इन्डोनेशीया कि सरकार का नोट दिखा रहा हु। जहा पर इन्डोनेशीया कि सरकार के द्वारा अपने यहा के सरकारी नोट पर गणेशजी महाराज का चित्र छापा गया हे । क्योकि वहा के लोगो के जिवन यापन के तरिके मे व हम हिन्दुस्थान के वासियो के रहने के तरिके मे कई प्रकार कि समानता हे।


अब मे आप को इस देश कि तथाकथित धर्मनिरपेक्ष वादी सरकार का एक धर्मनिर्पेक्ष चेहरा दिखा रहा हु..................R.B.I. ने केन्द्र कि इस तथाकथित धर्मनिरपेक्ष वादी सरकार के कहने से 1 रुपये 5 रुपये के सिक्के के उपर संत अल्फ़ोन्सा के जन्म के 100 साल पुरे होने पर उनकि तसवीर छापी हे । यह सब कुछ केवल हिन्दुस्थान मे हि हो सकता हे । क्या आप कभी कल्पना कर सकते हे कि कभि वेटिकन या इटली कि सरकार हमारे किसी देवी देवता की या हमारे यहा पेदा हुए शुरविरो मे से किसि एक का भी चित्र अपने यहा के सरकारी नोट मे छापेगि । यह हमारे लिये बहुत ही शर्म कि बात हे उससे भि बडे शर्म कि बात तो यह हे कि हमारे यहा कि सरकार को इस बात का कोइ दुख नही हे।
अत: मे विवेक साखलाँ आप सभी हिन्दुस्थान के वासियो से प्रार्थना करता हु कि इस प्रकार कि षड्यंत्रकारि राष्ट्र विरोधि योजनाओ का विरोध पुरी ताकत से करे ।

Wednesday, June 9, 2010

Special Interview With Pujaniya Sarsangh Chalak Sri Mohan Ji Bhagavath At Dhiksha Bhumi

When you became the Sar Sangha Chalak you visited Dhiksha Bhumi…

It is only natural thing. Dr. Ambedkar had visited RSS camp and had appreciated the absence of even trace of caste feelings among Swayam Sevaks. When Dr. Ambedkar converted to Buddhism Guruji remembered what Swami Vivekananda said about the nation needing the intellectual acumen of Sankara and the compassionate heart of Buddha. And it was an RSS man Dattopant Thengadi (the founder of Sangh workers’ union BMS) who was the election agent of Baba Saheb Ambedkar.

But there are people who see Ambedkar as enemy of Hinduism…


See…Dr. Ambedkar knew the good intentions of Sangh Hindus. But he also knew that at that time Hindus at large had not had change of heart with respect to Dalits. He knew that though Sangh wanted and would eventually achieve a Hindu society free of casteism, Sangh at that time, had neither the strength nor the authority to bring that change at once. He thought Dalits should not endure injustice till such a change would eventually come. So he converted. But he converted to Buddhism which is rooted in the Indian soil and which he considered as an inalienable part of Hindu culture. He also wanted to make sure that the depressed sections of the society were not lured away by failed alien ideologies like Marxism. In fact Ambedkar told Dattopant Thengadiji that he stands as the bulwark between Dalits and Marxism just as Guruji stands as bulwark between Marxism and non-Dalits. (Of course we consider Guruji not as representing any sectarian section of Hindu society but his heart and vision encompassed entire Hindu society including Dalits and non-Dalits.)

India Today reported that you eulogize Gandhiji in your addresses.


Oh…That should not be a surprise. Surely I did not discover Gandhiji in Sangh. Guruji has a whole lecture praising Mahatma. And the name of Mahatma Gandhi has entered the morning prayer of RSS long before I even became Prantha Pracharak. Gandhian vision of village development, Swadeshi, cow protection etc is harmonious with Sangh vision and mission. So if anyone is surprised because I mentioned Mahatma that surprise shows their ignorance of Sangh philosophy and history.


There are people who pit Ambedkar against Gandhi. How do you reconcile both?


All great leaders might have differences. But all of them valued society’s welfare and nation’s welfare. If we approach them in the same spirit, we can find harmonizing elements in them and learn from them in our own service to nation building. That has always been the approach of Sangh.

In Tamil Nadu there has been a strong movement to wean away Dalits from the national mainstream and Hindu culture. Does Sangh have any programme to counter this?


From the time of Meenakshipuram conversion, Sangh has paid special attention to Dalit problems in Tamil Nadu. There are many villages where untouchability has disappeared after Shakas appeared. In fact two villages which have been awarded Tamil Nadu government award for eradication of caste discrimination, are villages where Swayamsevaks have brought social harmony. In places where Dalits and non-Dalits have clashed Swayam Sevaks have been invited by both as peace makers. In Kerala also Sangh has worked dynamically for Dalit emancipation for example even at the famous Guruvayoor temple. Sangh has a clear vision that at every village access to water resources, living space, places of worship, hygienic conditions and cremation grounds should be common for all Hindus. In fact the numerical strength of Sangh activity and the disappearance of caste discrimination are directly proportional

You have always stressed about Hindu-ness. Whom do you define as Hindus? Are religious minorities Hindus or non-Hindus?

All Indians who consider this land as their ancestral and sacred land are Hindus irrespective of their ways of worship. All Indians who follow the Dharmic values and Samskrti which this land has cherished are Hindus. Those who have alienated themselves as religious minorities should realize this truth for this is the truth about their own true self-identity. They are not the descendants of Babur or David but they are the descendants of Rama and Krishna and Bharatha. All those who fulfill these three conditions together are Hindus in Rashtreeya sense.






Women dressing her child as
Krishna on Janmashtami, Hyderabad.
( A.P )







What is Sangh view on environmental problems and sustainable development particularly in the light of threats like Global warming?

Our the Dharmic values and Samskrti as well as our way of life are always eco-friendly. We venerate nature. For us all nature is imbued with Divinity. Cow protection has been part of it. An enlightened environmental policy has to be scientific. For that we need models based on experiments. Sangh and Sangh-related organizations are conducting such experiments throughout India. Also we should remember that a nation like Bharath has diverse eco-zones and we cannot have a single model and the regional environmental models have to be based on localized experiments. As I said there are many experiments like for example at Chitrakoot and in many villages in Maharashtra, Karnataka and Kerala. They will give us inputs to develop localized models for environmental policies which in turn will help us develop frame an enlightened and scientific policy for environmental problems and sustainable development.
With respect to science and spirituality India has an unique position among world civilizations.

What is Sangh view with respect to science, Indian culture and world future?

For Hindus Science and Spirituality are not opposed. They are two sides of the same coin. Upanishad says that those who pursue only physical sciences (without the knowledge of inner sciences) fall into darkness. But those who pursue only inner sciences ignoring physical sciences fall into even greater darkness. For those who seek only liberation (Moksha) and not Artha (Economic welfare) and Kama (worldly pleasures) perhaps inner sciences alone may suffice. But for those who live in society, for them also Moksha is the goal but they also seek Artha and gratify Kama and in doing this the regulating principle is Dharma. This integral approach to life has made Hindu society approach science and technology in a holistic manner. In fact Dharmic values and Samskrti of Hindus never had problems with science (unlike the western society). However this is the theory. This is the principle that we have in our Sastras. The world will have to accept this approach to life. But that will happen and that can happen only when we produce large number of scientists who shall contribute to the improvement of welfare of humanity. World will listen only to those who have strength. So Hindus have to become strong if Mother Bharathi’s voice has to be respected and if Her vision has to be accepted by the world community. Working towards that is the duty of every one of us.